चार्वाक दर्शन क्या है

Charvaka Darshan Kya Hai

चार्वाक दर्शन क्या है (Charvaka Darshan Kya Hai) what is  Charvaka Philosophy in Hindi) : मुक्तिदूत की ‘चार्वाक दर्शन केटेगरी’ में आज हम चार्वाक दर्शन का सामान्य परिचय (Charvaka darshan ka samanya parichay, General Introduction to Charvaka Philosophy in Hindi) प्रस्तुत कर रहे है |

चार्वाक एक सुखवादी, अनीश्वरवादी, प्रत्यक्षवादी और नास्तिक दर्शन है । वेद को प्रमाण न मानने के कारण इस दर्शन को नास्तिक कहा जाता है । ईश्वर की सत्ता में विश्वास न करने के कारण यह अनीश्वरवादी कहलाता है | प्रत्यक्ष की सीमा के बाहर किसी भी वस्तु को यथार्थ न मानने की वजह से यह प्रत्यक्षवादी कहलाता है । सुख या काम को मानव जीवन का अन्तिम लक्ष्य मानने के कारण यह सुखवादी कहलाता है |

चार्वाक एक जड़वादी दर्शन (Materialistic Philosophy)) है | जड़वाद के अनुसार जड़ (Matter) ही एकमात्र तत्व है और उसी से मन या चैतन्य की उत्पत्ति होती है | जड़वादी समर्थकों की एक साधारण प्रवृत्ति यह है कि वें धर्म, आत्मा, ईश्वर आदि उच्च तत्वों को जड़ जैसे निम्न तत्वों में परिणत करने का प्रयास करते है | भारतीय दर्शन में जड़वाद का एकमात्र उदाहरण चार्वाक दर्शन ही है ।

यद्यपि जड़वादी या भौतिकवादी मान्यताओं का उल्लेख हमें वैदिक काल से ही मिलता है, लेकिन भारतीय परम्परा में इसे तार्किक आधार पर प्रस्तुत करने का श्रेय चार्वाक दर्शन को ही मिलता है |

चार्वाक दर्शन की प्राचीनता

जड़वाद किसी न किसी रूप में भारत में प्राचीनकाल से ही प्रचलित है | चार्वाक का जड़वाद अथवा भौतिकवाद अवैदिक दर्शनों में सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है | इस जड़वादी दर्शन की प्राचीनता इस बात से सिद्ध होती है कि उपनिषद् दर्शन के पश्चात् और जैन व बौद्ध दर्शनों के उदय के पूर्व काल में हमें चार्वाक मत के संकेत मिलते है |

इसके अतिरिक्त भारतीय दर्शनों में चार्वाक दर्शन की प्राचीनता का पता इस बात से भी लगता है कि इस दर्शन का खण्डन विभिन्न भारतीय दर्शनों में हुआ है, जिससे स्पष्ट होता है कि चार्वाक दर्शन का विकास इन दर्शनों के पूर्व हुआ है |

दुर्भाग्य से चार्वाक पर कोई स्वतंत्र ग्रन्थ नही मिलता | अन्य दर्शनों की भांति इसके समर्थकों का कोई निश्चित सुसंगठित सम्प्रदाय भी नही मिलता है | पर प्रत्येक भारतीय दर्शन के पूर्व पक्ष में चार्वाक के विचारों की मीमांसा हुई है | मुख्यतः इसी से हमे चार्वाक दर्शन के मत का परिचय प्राप्त होता है |

भारतीय विचारधारा में चार्वाक दर्शन दीर्घकाल से उपहास का विषय बना रहा है | चार्वाक दर्शन का सबसे दुर्बल पक्ष नैतिक मूल्यों का निषेध करना है | इसने परलोक व अध्यात्म के निषेध के साथ ही मानवीय नैतिक मूल्यों को भी नकार दिया, जिससे यह समाज में लोकप्रिय न हो पाया |

जल्द ही जैन व बौद्ध दर्शनों का उदय हुआ, जिन्होंने वेद-प्रामाण्य के विरोध और ईश्वर के निषेध के बावजूद आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों का साग्रह प्रतिपादन किया परिणामस्वरूप चार्वाक दर्शन की जड़ें हिल गयी |

चार्वाक शब्द का अर्थ

इस दर्शन को चार्वाक क्यों कहा गया ? इस प्रश्न का निश्चित उत्तर आज तक पूर्णतः स्पष्ट नही है । विद्वान चार्वाक के शाब्दिक अर्थ को लेकर एकमत नही है |

कुछ विद्धानों का मत है कि इस दर्शन के प्रवर्तक ने सर्वप्रथम अपने जिस शिष्य को इसका उपदेश दिया उसका नाम चार्वाक था और इसलिए इस दर्शन का नाम चार्वाक पड़ गया | 

कुछ विद्वानों के अनुसार चार्वाक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘चर्व्’ धातु से हुई है । ‘चर्व्’ का अर्थ चबाना या भोजन करना होता है । चूँकि चार्वाक दर्शन का मूल मंत्र ‘खाओ, पीओ और मौज़ करो’ है | इसने ‘खाने, पीने और मौज करने’ को ही मानव का परम पुरुषार्थ माना है |

अतः खाने-पीने पर अत्यधिक बल देने के कारण इस दर्शन का नाम चार्वाक पड़ गया | दूसरे मतानुसार जो व्यक्ति ईश्वर, परलोक, आत्मा और सम्पूर्ण नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को चबा जाये, उसे चार्वाक कहते है |

कुछ विद्वानों का मत है कि ‘चार्वाक’ शब्द ‘चारु’ और ‘वाक्’ शब्दों के संयोग से बना है । ‘चारु’ का अर्थ मधुर और ‘वाक्’ का अर्थ वाणी होता है । इसप्रकार चार्वाक का अर्थ हुआ मधुर वाणी वाले | सुख व आनन्द से परिपूर्ण मुधर वाणी बोलने के परिणामस्वरूप इस दर्शन का नाम चार्वाक लोकप्रिय हो गया |

कुछ विद्वानों का मत है कि चार्वाक एक व्यक्तिविशेष, जो जड़वाद का कट्टर समर्थक था, का नाम था, | उसने अपने जड़वादी विचारों का प्रचार-प्रसार जनसाधारण में किया । परिणामस्वरूप उसके विचार व दर्शन का नाम चार्वाक पड़ गया | साथ ही चार्वाक शब्द जड़वाद का पर्याय बन गया ।

चार्वाक दर्शन का प्रवर्तक

चार्वाक दर्शन के प्रवर्तक के विषय में भी विद्वानों के बीच मतभेद है | कुछ विद्वानों के अनुसार चार्वाक दर्शन का प्रवर्तक बृहस्पति नामक एक नास्तिक आचार्य था | सम्भवतः यह बृहस्पति देवताओं के गुरु बृहस्पति से भिन्न होगा |

जबकि कुछ का मत है कि चार्वाक दर्शन के प्रवर्तक देवताओं के गुरु बृहस्पति ही थें | महाभारत और दूसरे धार्मिक ग्रन्थों में स्पष्ट शब्दों में बृहस्पति को जड़वादी विचारों का प्रतिपादक कहा गया है ।

ऐसा कहा जाता है कि सुरगुरु बृहस्पति ने असुरों के नाश के लिए जड़वादी विचारों का प्रचार प्रसार उनके बीच किया | जिससे जड़वादी विचारों का पालन करने से उनमे नैतिक व मानवीय मूल्यों का नाश हो और उनका विनाश हो जाये |

चार्वाक दर्शन का ग्रन्थ

चार्वाक दर्शन का हमे कोई भी क्रमबद्ध स्वतंत्र ग्रन्थ नही प्राप्त हुआ है | कृष्णपति मिश्र ने अपने प्रबोधचन्द्रोदय नामक नाटक में चार्वाक के सिद्धांतों का विवरण मिलता है | माधवाचार्य के सर्वदर्शन-संग्रह नामक ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में चार्वाक दर्शन की शिक्षाओं का सार प्राप्त होता है |  

अधिकांश भारतीय दर्शनों का मौलिक साहित्य ‘सूत्र’ है । अन्य भारतीय दर्शनों की भांति चार्वाक दर्शन का भी मौलिक साहित्य ‘सूत्र’ में था | डा. राधाकृष्णन ने बृहस्पति के सूत्रों को चार्वाक दर्शन का प्रमाण माना है । लेकिन अब वें सूत्र अब कही भी उपलब्ध नही है | निश्चित ही वें चार्वाक के आलोचकों द्वारा नष्ट कर दिए गये होंगे |

बृहस्पति के कुछ सूत्र, जो विभिन्न दार्शनिक ग्रन्थों में मिलते है, इस प्रकार है –

  • पृथिव्यप्तेजोवायुरीति तत्त्वानि अर्थात् पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि ही तत्व है |
  • तत्समुदाये शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञा अर्थात् इनके समुदाय से शरीर, इंद्रिय व विषय निर्मित होते है |
  • काम एवैकः पुरुषार्थः अर्थात् काम ही एकमात्र पुरुषार्थ है |
  • मरणमेवापवर्गः अर्थात् मरण ही मोक्ष है |

प्रो. एम. हिरियन्ना लिखते है कि “प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में चार्वाक दर्शन पर एक सूत्र-ग्रन्थ बृहस्पति द्वारा, जिसे मैत्री उपनिषद् ने एक नास्तिक आचार्य माना है, लिखा हुआ माना जाता है | क्योकि इसके कुछ उद्धरण कुछ जगह प्राप्त होते है, साथ ही इस पर लिखित एक भाष्य का भी उल्लेख कही प्राप्त होता है | अतः इसके अस्तित्व पर संदेह नही होना चाहिए |

परन्तु अब यह ग्रन्थ कही नही मिलता और इसलिए कह पाना कठिन है कि उसका सिद्धांत दर्शन कहलाने के कहाँ तक योग्य था या उसकी जो सर्वथा निंदा की गयी है वह कहाँ तक सही है |”

अब प्रश्न यह उठता है कि सूत्र के अभाव में इस दर्शन का ज्ञान कहाँ से मिला है ?

वर्तमान में चार्वाक दर्शन के विषय में हमें जो जानकारी प्राप्त होती है उसका आधार अन्य दर्शनों के ग्रन्थ है, जिसमे चार्वाक के मतों का खंडन हुआ है | प्रत्येक भारतीय दर्शन में चार्वाक के सिद्धांतो की समीक्षा हुई है, जो इस दर्शन की रूपरेखा निश्चित करती है ।

चार्वाक दर्शन के सिद्धांत विरोधी दर्शन के ग्रन्थों में संक्षेप के रूप में है, जिसे उनमे खंडन करने के प्रयोजन से सम्मिलित किया गया है | दुर्भाग्य से बिना किसी मौलिक अथवा प्रामाणिक ग्रन्थ के चार्वाक दर्शन का जो कुछ भी विचार अन्य विरोधी दर्शनों से प्राप्त होता है, उसी पर हमें निर्भर रहना पड़ रहा है |

निसंदेह विरोधी ग्रन्थों में चार्वाक दर्शन के दुर्बल पक्ष को ही दर्शाया गया हो तथा इसके सबल पक्ष की उपेक्षा की गयी हो | सच्चाई के नाम पर हमें अन्य ग्रन्थों में चार्वाक दर्शन का उपहास-चित्र ही प्राप्त होता है |

लोकायत दर्शन

चार्वाक दर्शन को ‘लोकायत दर्शन’ या ‘लोकायत मत’ भी कहा जाता है । यह दर्शन जनसाधारण के विचारों का प्रतिनिधित्व करता है । सामान्य मानव साधारणतः जड़वादी होता है | क्योकि चार्वाक दर्शन साधारण लोगों में आयत या विस्तृत (लोक+आयत) है इसलिए यह लोकायत भी कहलाता है |

इसे लोकायत इसलिए भी कहते है कि यह इस प्रत्यक्ष लोक (जगत्) को ही एकमात्र सत्य मानता है और परलोक का निषेध करता है | इसीलिए जड़वादी को लौकायतिक भी कहते है |

भारतीय दार्शनिक ग्रन्थों में चार्वाक, जड़वादी और लोकायत मत पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किये जाते है |