क्या डॉ. भीमराव आंबेडकर दलितों के ही मसीहा थें ?

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भारतीय इतिहास में अगर सबसे बड़े झूठ की बात कि जाये तो मेरी नजर में यह है कि ‘डॉ. भीमराव आंबेडकर दलितों के मसीहा’ थें | यह एक ऐसा वाक्य है जो बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा भारत के विकास में किये गये बहुमूल्य कार्यों को दलितों के इर्दगिर्द ही सीमित कर देता है | आधुनिक भारतीय समाज में डॉक्टर आंबेडकर के योगदान पर आजतक वास्तविक चर्चा तक भी नही की गयी |

आधुनिक भारत के इतिहास में डॉ. आंबेडकर जैसा विद्धान नही मिलेगा | बाबा साहेब आंबेडकर एक विद्धान लेखक, शिक्षाशास्त्री, समाजसुधारक, विधिवत्ता, राजनयिक के रूप में नई पीढ़ी के सामने एक महान आदर्श है | उनका यह स्थान कोई व्यक्ति शायद ही भविष्य में ले सकें | प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार विजेता और भारत रत्न सम्मान प्राप्त विख्यात अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन के अनुसार, “डॉक्टर भीमराव आंबेडकर अर्थशास्त्र में मेरे पिता है |” 

बाबा साहेब के कार्यो की ख्याति भारत में ही नही बल्कि सुदूर विदेशों तक फैली थी | 1952 में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी ने 9 प्रतिष्ठित विद्वानों को ‘डॉक्टर ऑफ़ लॉज’ की उपाधि से सुशोभित किया गया था, जिसमे डॉ. आंबेडकर को भी आमंत्रित किया गया था | डॉ. आंबेडकर को यह प्रतिष्ठित सम्मान देते समय उनका प्रशंसात्मक उल्लेख करते हुए उन्हें भारतीय संविधान रचयिता, कैबिनेट और राज्यसभा का माननीय सदस्य, महान समाज सुधारक, मानवीय अधिकारों का जुझारू प्रवर्तक और भारत का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण नागरिक कहा था |

वेवरले निकोलस नामक पत्रकार ने 1914 में डॉ. आंबेडकर की गणना भारत के प्रथम श्रेणी के विद्वानों में की थी |

बाबा साहेब के निर्वाण के बाद अमेरिका के अख़बार ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने लिखा, “सारा विश्व डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को अस्पृश्यों (अछूतों) के नेता के रूप में पहचानेगा, परन्तु उन्होंने भारत के संवैधानिक निर्माण में जो अमर छाप अंकित की है उसकी लोगों को अधिक जानकारी नही है |”

इसी समय लंदन के ‘टाइम्स’ अख़बार ने लिखा था, “भारत के ब्रिटिश शासन के अंतिम दिनों के राजनैतिक और सामाजिक इतिहास में उनका नाम प्रमुखता से जगमगायेगा | उनका धीरज व दृढ़ निश्चय उनके चेहरे पर सदा झलकता था | उनकी बुद्धिमानी का सानी तीनों लोकों में नही था, फिर भी उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता का कभी भी ढिंढोरा नही पीटा | इसका कारण यह था कि उन्हें आडम्बर करना नही आता था |”

दलित जाति का होने के कारण बाबा साहेब आंबेडकर के साथ भारत में कितना भेदभाव किया गया इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि आधुनिक भारत के विकास में अमूल्य योगदान देने के बावजूद उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने में कोई पहल नही की गयी | उनके निर्वाण के 34 वर्षों के पश्चात् 1990 में वीपी सिंह सरकार ने बाबा साहेब आंबेडकर को ‘भारत रत्नसे सम्मानित किया था |

डॉ. आंबेडकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने के लिए भी कोई पहल नहीं की गई। उनकी मौत के 34 वर्षों के बाद 1990 में वीपी सिंह सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जबकि कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया । 1990 में बाबा साहेब को मरणोपरांत यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्राप्त होने से पूर्व 1954 से 1988 तक 21 लोगों को यह सम्मान प्रदान किया गया | यह बात आप खुद सोचिये कि क्या इन सभी 21 लोगों ने आधुनिक भारत के विकास में बाबा साहेब से ज्यादा योगदान दिया ? क्या भारत की राजनीति पर मनुवाद हावी है ? क्या सम्मान के लिए योग्यता से ज्यादा जाति महत्वपूर्ण है ?        

सत्ता के अंधे प्रेम में भारतीय राजनीतिक पार्टियों ने सबसे ज्यादा डॉक्टर आंबेडकर के नाम का ही इस्तेमाल किया है, जबकि देश की जनता के सामने उनके अभूतपूर्व कार्यों का वास्तविक उल्लेख कभी किया ही नही | सभी राजनीतिक पार्टियों ने दलित वोट बैंक के लिए बाबा साहेब के नाम का प्रयोग मात्र दलित मसीहा के रूप में किया |

इस लेख को पढ़ने के बाद आपको यह मालूम होगा कि आधुनिक भारत के विकास में जीतना योगदान डॉक्टर आंबेडकर ने दिया, उसका आधा कार्य भी शायद ही किसी अन्य भारतीय महापुरुष ने किया है | एक अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् और कानून के विशेषज्ञ के रूप में डॉक्टर आंबेडकर ने आधुनिक भारत की नींव रखी थी और देश उनके इस अभूतपूर्व योगदान के प्रति आज भी जागरूक नहीं है |

डॉक्टर आंबेडकर दलितों के नही बल्कि पूरे भारतीय समाज के मसीहा है | वास्तव में दलित जाति का होने के कारण उनके विचारों और योगदानों को आधे-अधूरे मन से प्रसारित किया गया | यदि इतना कार्य किसी सवर्ण महापुरुष ने किया होता तो शायद इतिहास लेखकों का रवैया इससे भिन्न होता |

मेरा यह कहना शायद गलत नही होगा कि बहुसंख्यक सवर्ण इतिहासकारों द्वारा बाबा साहेब के अमूल्य योगदानों को बहुत ही खूबी के साथ छिपा कर इस देश की जनता के मन में डॉ. आंबेडकर के बारे में भ्रम फैलाने की साज़िश रची गई और यह प्रचारित किया कि उनका योगदान दलित समाज तक ही सीमित है |

हिन्दू धर्म के कलंक अस्पृश्यता (छुआछूत) को बड़े-बड़े महात्मा भी समाप्त न कर पाए | बाबा साहेब आंबेडकर ने हिन्दू धर्मग्रन्थों द्वारा जबरन थोपें गये और हजारों सालो से हिन्दू धर्म में मान्य अस्पृश्यता को एक झटके से कानून के बल पर नष्ट कर दिया | उन्होंने इंसान-इंसान में भेद उत्पन्न केने वाली मनुस्मृति का होमकर विषमता को ललकारा तथा संविधान की सुरंग लगाकर उसे नष्ट करने का प्रयत्न किया |  

डॉ. आंबेडकर राजनीति के दृष्टा थें | प्रजातंत्र की रक्षा के लिए उन्होंने कई बार खतरे की जानकारी दी थी | उन्होंने पाकिस्तान बनने की भविष्यवाणी की थी और ऐसे उपाय भी बताये थें, जिनसे जानमाल का नुकसान न हो | उन्होंने संसद में चीनी आक्रमण की भी भविष्यवाणी की थी |

डॉ. आंबेडकर के पास असीमित ज्ञान-भंडार था | उनके पास असीमित योग्यताएं थी | लेकिन उन्हें कभी भी किसी पद की लालसा नही थी | देश के ऊँचे से ऊँचे पद उन्हें पेश किये गये थें | हाईकोर्ट के न्यायाधीश का पद उन्हें मिल रहा था | राष्ट्रपति पद के लिए भी उनके नाम की गयी थी | लेकिन उन्होंने कभी भी ऐसे पदों को पाने के लिए किसी से न पेशकश की और न ही इसके लिए वें लालायित हुए | उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों को ठुकरा दिया था |

डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने प्रजातंत्र और साम्यवाद में समन्वय स्थापित करने का स्वप्न साकार करने का प्रयास किया | भारतीय संविधान, जो विश्व का सबसे लम्बा और ब्यौरेवाला सांविधानिक दस्तावेज है, डॉ. आंबेडकर के अलावा कोई और लिख ही नही सकता था |

29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए प्रारूप समिति का गठन कर उसका अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर को बनाया | इस तरह भारत के भवितव्य का शिल्प निर्माण करने का कार्य उनको सौंपा गया |

डॉ. आंबेडकर ने संविधान का खाका 4 नवम्बर 1948 को संविधान सभा के विचाराधीन प्रस्तुत करते हुए कहा था, “यह संविधान प्रत्यक्ष व्यवहार में लाने योग्य है | यह लचीला है, साथ ही शांति के दिनों में हो, अथवा युद्ध के काल में हो, देश को एकता के सूत्र में बांध रखने के लिए अत्यंत प्रभावशाली और सक्षम है |…..यदि संविधान का सही प्रकार से अनुसरण नही हो पाया तो यही कहना होगा कि दोष संविधान का नही है, बल्कि इंसानों में मौजूद अवगुणों का है |”

बाबा साहेब ने इस विशाल देश में व्यक्ति-व्यक्ति में निर्माण किये गये भेदभाव को समाप्त कर सभी नागरिकों को समान अधिकारों को स्थापित करने वाला संविधान प्रदान करके ढाई हजार वर्षों के बाद पहली बार प्रजातंत्र के मूल्यों की नींव रखी |  

उन्होंने एक ऐसे संविधान की रचना की, जिसकी दृष्टि में सभी नागरिक एक समान हो, धर्मनिरपेक्ष हो, जाति-धर्म का भेदभाव न हो और जिस पर भारत के समस्त नागरिक पूर्ण विश्वास करें |

कुछ मूर्ख यह प्रचारित करते है कि भारत का संविधान डॉ. आंबेडकर ने अकेले नही बल्कि उनकी टीम ने तैयार किया था | ऐसे मूर्ख लोग यह हजम नही कर पाते कि हमारे देश का संविधान एक दलित, विशेषकर उनकी नजर में एक अस्पृश्य व्यक्ति, ने लिखा है |

भारत के संविधान को लिखने में बाबा साहेब आंबेडकर को कितना परिश्रम करना पड़ा था यह आपको टी.टी. कृष्णमाचारी द्वारा संविधान सभा में दिए गये भाषण के इस अंश को पढ़ कर पता चल जायेगा |

5 नवम्बर, 1949 को टी.टी. कृष्णमाचारी ने संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर के संविधान के निर्माण में योगदान पर भाषण देते हुए कहा था कि “संविधान का निर्माण करने वाली चुनिन्दा सात सदस्यों की समिति में से एक सदस्य ने त्यागपत्र दे दिया, एक सदस्य की मृत्यु हो गयी, एक सदस्य अमेरिका चला गया, एक सदस्य रियासतों के कामकाज में व्यस्त रहा, एक-दो सदस्य दिल्ली से दूर रहते थें | उनका स्वास्थ्य ठीक न रहने से वें उपस्थित न रह सके | नतीजा यह हुआ कि संविधान निर्माण करने का पूरा भार अकेले डॉ. आंबेडकर को ही उठाना पड़ा |”

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान निर्माण में डॉ. आंबेडकर के योगदान पर कहा, “अपना गिरता हुआ स्वास्थ्य की परवाह न करके डॉ. आंबेडकर ने अपनी कार्य निपुणता से केवल अपने चुनाव को सार्थक ही नही किया, बल्कि अपने पद को गरिमा प्रदान की |”       

राष्ट्रमंडल के साथ हमारे देश के सम्बन्ध डॉक्टर भीमराव आंबेडकर द्वारा सुझाई हुई शर्तों पर ही आधारित है | 1948 में बाबा साहेब आंबेडकर ने ‘भारत के ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के साथ कैसे सम्बन्ध रहें’, विषय पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण विज्ञप्ति तैयार करके निजी तौर पर भारत के अर्थमंत्री के पास भेजी |

इस विज्ञप्ति में वें लिखते है कि. “भारत की तरह राष्ट्र्मंडल को भी भारत के सहयोग की आवश्यकता है | औद्योगिक प्रगति के लिए और प्रतिरक्षा के लिए जितनी जल्दी मदद ब्रिटिश कॉमनवेल्थ से प्राप्त हो सकती है उतनी जल्दी कही और से नही प्राप्त हो सकती है | इसलिए राष्ट्र्मंडल से सम्बन्ध-विच्छेद करना भारत के लिए उचित नही है |”

इसके जवाब में अर्थमंत्री ने डॉ. आंबेडकर को पत्र में लिखा था, “इतने कठिन सवाल का इतना सरल व चुस्त दुरुस्त विश्लेषण मैं बड़े शौक से पढ़ गया |”

भले ही डॉ. आंबेडकर को जीवनभर भेदभाव का सामना करना पड़ा था लेकिन उन्होंने कभी भी किसी व्यक्ति भेदभाव नही किया |

डॉ भीमराव आंबेडकर हमेशा सभी तरह के भेदभाव के विरोधी रहे थें, चाहे वह दलितों के साथ या महिलाओं के साथ | हिन्दू कोड बिल इसका उदाहरण है | वें हिंदुओं में सामाजिक अधिकार और महिलाओं को संपत्ति का अधिकार देने की बात करने वाले हिंदू कोड को समाज सुधार के लिए ज़रूरी मानते थे | लेकिन हिन्दू कट्टरपंथी पुरुष महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार देने को कतई भी राजी न थें |

नेहरु सरकार भी इन कट्टरपंथियों के आगे झुकी हुई थी | 17 सितम्बर 1951 को हिन्दू कोड बिल पर चर्चा करते हुए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने व्यंग्य से कहा, “आंबेडकर को वर्तमान काल का मनु और याज्ञवल्क्य कहलाने की अभिलाषा है |”

पंडित मदनमोहन मालवीय जैसे हिन्दू नेता हिन्दू कोड बिल के विरुद्ध संसद के भीतर व बाहर जनमत जागृत कर रहे थें | किसी ने डॉ. आंबेडकर को ‘कलियुग का मनु’ कहकर सम्बोधित किया |

लेकिन बाबा साहेब इस सब विरोध से विचलित न हुए उन्होंने कहा, “आपको मुझे जितनी गलियां देनी हो दे लीजिये परन्तु इस बिल को पास करने में अधिक समय बर्बाद न करें | मुझे इस गाली-गलौज से ज्यादा महत्व समय की कीमत का लगता है |”

इसके पहले बाबा साहेब ने 10 अगस्त 1951 को पत्र लिखकर पंडित नेहरु को बताया कि उनकी तबियत दिनों-दिन तेजी से गिरती जा रही है | अतः 16 अगस्त से 1 सितम्बर तक हिन्दू कोड बिल चर्चा के लिए लिया जाये व उसे मंजूर किया जाये | इस पर पं. नेहरु ने बाबा साहेब को सब्र रखने की सलाह दी |

हिंदू कोड बिल के तहत भारतीय समाज में कई महत्वपूर्ण सुधार किये जाने थें, जिसमे पिता की संपत्ति में पुत्रों और पुत्रियों को समान अधिकार, विवाहित पुरुषों को एक से अधिक पत्नियों को रखने पर पाबंदी, पत्नियों को भी तलाक का अधिकार जैसे कानून थें | परन्तु रुढ़िवादी हिन्दू ताकतों ने सरकार पर दबाव बनाकर हिन्दू कोड बिल लागू नही होने दिया | 

जैसेकि मैंने पहले ही लिखा था, बाबा साहेब आंबेडकर को कभी पद की लालसा नही थी |  उन्होंने हिन्दू कोड बिल का विरोध होने पर 1951 को मंत्री पद से त्यागकर दे दिया |

भले ही बाबा साहेब ने महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए कैबिनेट मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया था, लेकिन भारत के नारीवादी आंदोलनों में बाबा साहेब को महत्व नही दिया गया | सवर्ण महिलाएं तो शायद ही बाबा साहेब के इस कार्य की कभी प्रशंसा करें |

बाबा साहेब आंबेडकर में देशप्रेम कूट-कूट भरा था | भले ही उनके साथ इस देश में जीवनभर भेदभाव किया गया लेकिन वे इसकी चर्चा देश के बाहर नही करते थें | 1950 में कोलंबिया विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ़ लॉज’ की उपाधि प्रदान करने की घोषणा की थी | भारत में जब कुछ लोगों ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया किया कि भारत के किसी भी विश्वविद्यालय को डॉ. आंबेडकर को गौरव करने का विचार क्यों नही सूझा | इस पर बाबा साहेब ने कहा, “मन में आप लोग यह कल्पना भी न करें कि मैं वहां अपने देश के खिलाफ एक बात भी कहूँगा | मैं सदैव देश की भलाई के लिए सदा लगन व तत्परता से काम करता रहा हूँ | मैंने एक पल भी देशहित के अलावा किसी बात पर विचार नही किया है | गोलमेज परिषद में भी देशप्रेम के मामले में मैं महात्मा गाँधी से भी दो सौ मील आगे चलता था |”

बाबा साहेब प्रजातंत्र के कट्टर समर्थक थें | उन्होंने कहा था कि, “प्रजातंत्र ऐसी शासन व्यवस्था और प्रणाली है जिससे समाज के सामाजिक और आर्थिक जीवन में बिना रक्तपात के क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सके |”

बाबा साहेब आंबेडकर ने भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई था | उनके द्वारा दिए गये दिशा-निर्देशों के आधार पर ही रिज़र्व बैंक की स्थापना हुई |

डॉ. आंबेडकर की प्रेरणा से ही भारत के वित्त आयोग की स्थापना हुई थी ।  हीराकुंड परियोजना, दामोदर घाटी परियोजना तथा सोन नदी परियोजना को स्थापित करने में  इनकी अहम भूमिका थी |

भारत में एमप्लोयेमेंट एक्सचेंज की स्थापना का श्रेय भी डॉक्टर आंबेडकर को जाता है |

भारत में बिजली व पानी के ग्रिड सिस्टम की स्थापना में भी इनका का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है । भारत में एक स्वतंत्र चुनाव आयोग की स्थापना भी इन्ही की देन है |

डॉक्टर आंबेडकर भविष्य की समस्याओं को पहले ही पहचान लेते है | आज हम जिस शिक्षा के व्यावसायीकरण की समस्या का सामना कर रहे है, उसे उन्होंने अपने समय ही पहचान लिया था |  उनके अनुसार, “शिक्षा एक ऐसी चीज है जो सभी को प्राप्त होनी चाहिए | शिक्षा विभाग ऐसा नही है, जो इस आधार पर चलाया जाये कि जितना वह खर्च करता है, उतना शिक्षार्थियों से वसूला जाये | शिक्षा को सब सम्भव उपायों से व्यापक रूप से सस्ता बनाया जाना आवश्यक है |”

डॉ. आंबेडकर मजदूरों के मुक्तिदाता थें | वें भारत के मजदूरों के लिए 8 घंटे का कार्य निर्धारण करके उनके जीवन में उजाला लेकर आये थें | उनके प्रयत्नों से ही मजदूरों के कार्य की अवधि 12 घंटे से 8 घंटे हो पायी | श्रम मंत्री के रूप में उन्होंने सारे भारतीय मजदूरों के कल्याण के लिए कानून बनवाये |

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर जैसे महान राष्ट्रप्रेमी, समाज-सुधारक, न्यायविद्, लेखक, राजनयिक, अर्थशास्त्री, शिक्षाशास्त्री, दार्शनिक, बहुमुखी प्रतिभा के धनी विद्वान को समाज जब केवल दलित-मसीहा का दर्जा देता है तो समाज उन्हें फिर उसी जाति-व्यवस्था के बेड़ियों में जकड़ देता है, जहाँ एक दलित व्यक्ति की सारी योग्यताओं को केवल दलित होने के कारण हीन दृष्टि से देखता है | डॉ. आंबेडकर को मात्र दलितों का मसीहा कहना शायद उनके साथ किया जाने वाला सबसे बड़ा अन्याय है |

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